बुधवार, 16 सितंबर 2009

छुईमुई मेरे आंगन में

छुई मुई मेरे आंगन में
साँझ ढलते ही
मुरझाती है
सुबह होते ही
खिल जाती है
हरे भरे परिधान में
छुईमुई मेरे आंगन में
नाजुक सा तन बदन
सुमन सी सुकुमारी
मृदु स्पर्श मात्र से
सिमट-सिमट कर
रह जाती
आते -जाते सबके
पुलक जगाती तन मन में
छुईमुई मेरे आंगन में
उसके निकट बैठू तो
आती है मुझको
उससे चंपा सी गंध
पत्ते -पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहँदी के गीत में
छुई- मुई मेरे आंगन में!

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