मंगलवार, 17 मई 2011

छंद रचने के क्षण .....

रात के क्षण
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग क़ी राहें !
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते !
छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा !
उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !

16 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

भग्न अंतर क़ी निराशा
मन उदास
आँखे नम है !
निर्जन रात
............
koi sannata pasar raha hai , shayad koi geet ubhre

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता.

सादर

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सृजन के लिए कुछ तो निराशा, कुछ चोट आवश्यक है ना! अच्छी रचना के लिए बधाई सुमन जी॥

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !

हर सृजन के लिए कुछ वेदना होनी चाहिए ... सुन्दर अभिव्यक्ति

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !

बहुत सुंदर सुमनजी..... यही वेदना फिर शब्दों में ढल जाती है....

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत सुंदर कविता |अंतर्मन की वेदना को बहुत सलीके से आपके शब्द सामर्थ्य ने उजागर किया है बधाई सुमन जी |

विशाल ने कहा…

आदरणीय सुमन जी,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.
निराशा के क्षणों में ही उत्कृष्ट सृजन होता है.

36solutions ने कहा…

छंदों के शब्‍दों में भाव ऐसे ही पल में उमड़ते हैं. धन्‍यवाद.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

बहुत बढिया,

बच्चों का प्यारा,

ज्योति सिंह ने कहा…

भग्न अंतर क़ी निराशा
मन उदास
आँखे नम है !
निर्जन रात
bha gayi rachna sundar

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन के भाव शब्दों में उतारना ही सृजन है ... बहुत अच्छा लिखा है आपने ...

Apanatva ने कहा…

aise kshano se chutkara nahee hava ke khonke se aae jeevan me padav na dale isee shubhkamnao ke sath.

rachana bhavo kee sunder abhivykti hai .
aabhar .

Asha Joglekar ने कहा…

छंद रचने के क्षण जो दे जाती है उसी के हैं हम शुक्रगुजार । सुंदर कविता, बहुत अच्छी लगी ।

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा

rajnee ke pehre me hi to vichaar nirbaadh aate hain......

Richa P Madhwani ने कहा…

http://shayaridays.blogspot.com

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर कविता, बहुत बहुत बधाई